Tuesday, July 13, 2010

गुलज़ार साहब की खूबसूरत ग़ज़ल

मशहूर फिल्मी गीतकार जनाब गुलज़ार साहब की इक बहुत खूबसूरत ग़ज़ल पेश है, उम्मीद है पसंद आएगी.

खुशबू जैसे लोग मिले अफ़साने में
एक पुराना खत खोला अनजाने में

जाना किसका ज़िक्र है इस अफ़साने में
दर्द मज़े लेता है जो दुहराने में

शाम के साये बालिस्तों से नापे हैं
चाँद ने कितनी देर लगा दी आने में

रात गुज़रते शायद थोड़ा वक्त लगे
ज़रा सी धूप दे उन्हें मेरे पैमाने में

दिल पर दस्तक देने ये कौन आया है
किसकी आहट सुनता है वीराने मे ।

14 comments:

  1. जाना किसका ज़िक्र है इस अफ़साने में
    दर्द मज़े लेता है जो दुहराने में
    *
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    *
    वाह...बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल है.

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  2. बहुत प्यारी ग़ज़ल पढवाई आपने मज़ा आ गया...

    आभार आपका...

    रात गुज़रते शायद थोड़ा वक्त लगे
    ज़रा सी धूप दे उन्हें मेरे पैमाने में


    इस शे'र में ज़रा कुछ फर्क लग रहा है...

    आप फिर से देख लीजिये...

    एक बार फिर आभार...

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  3. dhoop jaraa si de mere paimaane mein.....?

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  4. @shadab
    @ manu
    शुक्रिया
    मनु भाई, होसला अफज़ाई के लिए शुक्रिया .

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  5. अच्छी गजल व शानदार प्रस्तुती ...

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  6. अरे वाह ...गज़ब की ग़ज़ल है ...शुभकामनायें

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  7. @ honesty
    @ satish saxena

    होसला अफज़ाई के लिए शुक्रिया .

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  8. बहुत प्यारी ग़ज़ल है दोस्त !

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  9. शानदार प्रस्तुती
    आभार

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  10. @ SAJID
    @ MUFLIS


    होसला अफज़ाई के लिए शुक्रिया .

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  11. बढिया प्रस्तुति!

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  12. खेद है मुझे आने में देर हो चुकी है, बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति बधाई ।

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