मशहूर फिल्मी गीतकार जनाब गुलज़ार साहब की इक बहुत खूबसूरत ग़ज़ल पेश है, उम्मीद है पसंद आएगी.
खुशबू जैसे लोग मिले अफ़साने में
एक पुराना खत खोला अनजाने में
जाना किसका ज़िक्र है इस अफ़साने में
दर्द मज़े लेता है जो दुहराने में
शाम के साये बालिस्तों से नापे हैं
चाँद ने कितनी देर लगा दी आने में
रात गुज़रते शायद थोड़ा वक्त लगे
ज़रा सी धूप दे उन्हें मेरे पैमाने में
दिल पर दस्तक देने ये कौन आया है
किसकी आहट सुनता है वीराने मे ।
जाना किसका ज़िक्र है इस अफ़साने में
ReplyDeleteदर्द मज़े लेता है जो दुहराने में
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वाह...बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल है.
achcha..........
Deleteबहुत प्यारी ग़ज़ल पढवाई आपने मज़ा आ गया...
ReplyDeleteआभार आपका...
रात गुज़रते शायद थोड़ा वक्त लगे
ज़रा सी धूप दे उन्हें मेरे पैमाने में
इस शे'र में ज़रा कुछ फर्क लग रहा है...
आप फिर से देख लीजिये...
एक बार फिर आभार...
dhoop jaraa si de mere paimaane mein.....?
ReplyDelete@shadab
ReplyDelete@ manu
शुक्रिया
मनु भाई, होसला अफज़ाई के लिए शुक्रिया .
अच्छी गजल व शानदार प्रस्तुती ...
ReplyDeleteअरे वाह ...गज़ब की ग़ज़ल है ...शुभकामनायें
ReplyDelete@ honesty
ReplyDelete@ satish saxena
होसला अफज़ाई के लिए शुक्रिया .
बहुत प्यारी ग़ज़ल है दोस्त !
ReplyDeleteशानदार प्रस्तुती
ReplyDeleteआभार
@ SAJID
ReplyDelete@ MUFLIS
होसला अफज़ाई के लिए शुक्रिया .
बढिया प्रस्तुति!
ReplyDeleteखेद है मुझे आने में देर हो चुकी है, बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति बधाई ।
ReplyDeleteBOHOT KHOOB
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