दाग़ दहलवी की ग़ज़ल के चन्द अश्'आर पेशे ख़िदमत हैं
कहाँ थे रात को हमसे ज़रा निगाह मिले
तलाश में हो कि झूठा कोई गवाह मिले
तेरा गुरूर समाया है इस क़दर दिल में
निगाह भी न मिलाऊं तो बादशाह मिले
मसल-सल ये है कि मिलने से कौन मिलता है
मिलो तो आँख मिले, मिले तो निगाह मिले
कहाँ थे रात को हमसे ज़रा निगाह मिले
ReplyDeleteतलाश में हो कि झूठा कोई गवाह मिले
अच्छा इंतखाब है.
ReplyDelete@sharif Khan Sahab
ReplyDeleteSHUKRIYA
बहुत ही बढ़िया इंतेखाब है सहसपुरिया साहब!
ReplyDeleteउम्मीद है कि आप बिजनौर वाले सहसपुर से हैं..
शुक्रिया, बाजी.....उम्मीद है शफ्क़्क़त बनाए रखेगीं.
ReplyDeleteवापस जाने का मन नहीं हुआ, बारी-बारी सबकी बारी आ रही है, बहुत ही खूबसूरत रचना ।
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