Sunday, July 11, 2010

दाग़ दहलवी की ग़ज़ल

दाग़ दहलवी की ग़ज़ल के चन्द अश्'आर पेशे ख़िदमत हैं

कहाँ थे रात को हमसे ज़रा निगाह मिले
तलाश में हो कि झूठा कोई गवाह मिले

तेरा गुरूर समाया है इस क़दर दिल में
निगाह भी न मिलाऊं तो बादशाह मिले

मसल-सल ये है कि मिलने से कौन मिलता है
मिलो तो आँख मिले, मिले तो निगाह मिले

6 comments:

  1. कहाँ थे रात को हमसे ज़रा निगाह मिले
    तलाश में हो कि झूठा कोई गवाह मिले

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  2. अच्छा इंतखाब है.

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  3. बहुत ही बढ़िया इंतेखाब है सहसपुरिया साहब!
    उम्मीद है कि आप बिजनौर वाले सहसपुर से हैं..

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  4. शुक्रिया, बाजी.....उम्मीद है शफ्क़्क़त बनाए रखेगीं.

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  5. वापस जाने का मन नहीं हुआ, बारी-बारी सबकी बारी आ रही है, बहुत ही खूबसूरत रचना ।

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