Monday, July 5, 2010

वसीम बरेलवी मेरे पसंदीदा शायर

वसीम बरेलवी

उसूलों पे जहाँ आँच आये टकराना ज़रूरी है
जो ज़िन्दा हों तो फिर ज़िन्दा नज़र आना ज़रूरी है

नई उम्रों की ख़ुदमुख़्तारियों को कौन समझाये
कहाँ से बच के चलना है कहाँ जाना ज़रूरी है

थके हारे परिन्दे जब बसेरे के लिये लौटे
सलीक़ामन्द शाख़ों का लचक जाना ज़रूरी है

बहुत बेबाक आँखों में त’अल्लुक़ टिक नहीं पाता
मुहब्बत में कशिश रखने को शर्माना ज़रूरी है

सलीक़ा ही नहीं शायद उसे महसूस करने का
जो कहता है ख़ुदा है तो नज़र आना ज़रूरी है

मेरे होंठों पे अपनी प्यास रख दो और फिर सोचो
कि इस के बाद भी दुनिया में कुछ पाना ज़रूरी है

11 comments:

  1. बेहतरीन ग़ज़ल!


    बाहर मानसून का मौसम है

    बाहर मानसून का मौसम है,
    लेकिन हरिभूमि पर
    हमारा राजनैतिक मानसून
    बरस रहा है।
    आज का दिन वैसे भी खास है,
    बंद का दिन है और हर नेता
    इसी मानसून के लिए
    तरस रहा है।


    मानसून का मूंड है इसलिए
    इसकी बरसात हमने
    अपने ब्लॉग
    प्रेम रस
    पर भी कर दी है।

    राजनैतिक गर्मी का
    मज़ा लेना,
    इसे पढ़ कर
    यह मत कहना
    कि आज सर्दी है!

    मेरा व्यंग्य: बहार राजनैतिक मानसून की

    ReplyDelete
  2. बहुत बेबाक आँखों में त’अल्लुक़ टिक नहीं पाता
    मुहब्बत में कशिश रखने को शर्माना ज़रूरी है

    सलीक़ा ही नहीं शायद उसे महसूस करने का
    जो कहता है ख़ुदा है तो नज़र आना ज़रूरी है

    kya baat hai anand aa gaya in ashaaron ko padhkar

    ReplyDelete
  3. खूबसूरत ग़ज़ल.

    हिजाब के ऊपर मैंने एक लेख लिखा है, मेरे ब्लॉग पर ज़रूर देखिएगा.

    ReplyDelete
  4. @शाहनवाज़,
    @मनीष कुमार
    @अंजुम शेख़
    आप सभी का शुक्रिया

    ReplyDelete
  5. BHAI WAH MAZA AA GAYA.WASIM SAHAB KA ANDAZ ALAG HAI,

    ReplyDelete
  6. आप की पसंद काबिले दाद है.
    मेंने वन्देमातरम पर कुछ इज़हारे ख्याल किया है देखने की ज़हमत फरमाएं तो ममनून होऊंगा.

    ReplyDelete
  7. क्या हो गया सहसपुरिया साहब ! ! यह कमेंट्स कहाँ गायब हो जाते हैं ! आपकी साईट पर भी ,मेरी तरह ,सुबह ६ बजे के बाद, एक भी कमेन्ट न पाकर दिल कुछ हल्का हुआ ;-) आखिर हूँ तो ब्लागर ही
    ( मेरे ब्लाग पर पिछले कई घंटे से आये सारे कमेन्ट गूगल खा गया ). एक शेर नज़र है

    दिल खुश हुआ मस्जिद ए वीरान देख कर
    मेरी तरह खुदा का भी खाना खराब है !

    ReplyDelete
  8. सलीक़ा ही नहीं शायद उसे महसूस करने का
    जो कहता है ख़ुदा है तो नज़र आना ज़रूरी है
    क्या बात है सहाब बहुत बढ़िया ये लाइन !
    सर में सिर्फ ये लाइन ही पढ़ पाया और सब तो मुझे सिर्फ जीरो ही नज़र आ रहा है !

    ReplyDelete
  9. सतीश भाई , अब में क्या कहूँ ?
    मेरे लिए तो इतना ही बहुत है,
    आप जैसे दो चार मुहब्बत वाले आ जाएँ तो दिल खुश हो जाता है. बस आप अपना प्रेम बनाए रखें रही बात गूगल की ये तो फिर भी मशीन है यहाँ तो अच्छे भले आदमी का भी कभी मूड ख़राब हो जाता है.

    ReplyDelete
  10. साजिद भाई
    ये कलाम डा० वसीम बरेलवी का है अब उनके बारे में क्या कहूँ .वो उस्ताद शायर है.
    शुक्रिया आप सभी का ..

    ReplyDelete
  11. सलीक़ा ही नहीं शायद उसे महसूस करने का
    जो कहता है ख़ुदा है तो नज़र आना ज़रूरी है ।
    क्‍या बात है, भाई सहसपुरिया जी मुझे तो लग रहा है कि इन सबको पढ़ने के लिये बार-बार आना पड़ेगा ।

    ReplyDelete