वसीम बरेलवी
उसूलों पे जहाँ आँच आये टकराना ज़रूरी है
जो ज़िन्दा हों तो फिर ज़िन्दा नज़र आना ज़रूरी है
नई उम्रों की ख़ुदमुख़्तारियों को कौन समझाये
कहाँ से बच के चलना है कहाँ जाना ज़रूरी है
थके हारे परिन्दे जब बसेरे के लिये लौटे
सलीक़ामन्द शाख़ों का लचक जाना ज़रूरी है
बहुत बेबाक आँखों में त’अल्लुक़ टिक नहीं पाता
मुहब्बत में कशिश रखने को शर्माना ज़रूरी है
सलीक़ा ही नहीं शायद उसे महसूस करने का
जो कहता है ख़ुदा है तो नज़र आना ज़रूरी है
मेरे होंठों पे अपनी प्यास रख दो और फिर सोचो
कि इस के बाद भी दुनिया में कुछ पाना ज़रूरी है
बेहतरीन ग़ज़ल!
ReplyDeleteबाहर मानसून का मौसम है
बाहर मानसून का मौसम है,
लेकिन हरिभूमि पर
हमारा राजनैतिक मानसून
बरस रहा है।
आज का दिन वैसे भी खास है,
बंद का दिन है और हर नेता
इसी मानसून के लिए
तरस रहा है।
मानसून का मूंड है इसलिए
इसकी बरसात हमने
अपने ब्लॉग
प्रेम रस
पर भी कर दी है।
राजनैतिक गर्मी का
मज़ा लेना,
इसे पढ़ कर
यह मत कहना
कि आज सर्दी है!
मेरा व्यंग्य: बहार राजनैतिक मानसून की
बहुत बेबाक आँखों में त’अल्लुक़ टिक नहीं पाता
ReplyDeleteमुहब्बत में कशिश रखने को शर्माना ज़रूरी है
सलीक़ा ही नहीं शायद उसे महसूस करने का
जो कहता है ख़ुदा है तो नज़र आना ज़रूरी है
kya baat hai anand aa gaya in ashaaron ko padhkar
खूबसूरत ग़ज़ल.
ReplyDeleteहिजाब के ऊपर मैंने एक लेख लिखा है, मेरे ब्लॉग पर ज़रूर देखिएगा.
@शाहनवाज़,
ReplyDelete@मनीष कुमार
@अंजुम शेख़
आप सभी का शुक्रिया
BHAI WAH MAZA AA GAYA.WASIM SAHAB KA ANDAZ ALAG HAI,
ReplyDeleteआप की पसंद काबिले दाद है.
ReplyDeleteमेंने वन्देमातरम पर कुछ इज़हारे ख्याल किया है देखने की ज़हमत फरमाएं तो ममनून होऊंगा.
क्या हो गया सहसपुरिया साहब ! ! यह कमेंट्स कहाँ गायब हो जाते हैं ! आपकी साईट पर भी ,मेरी तरह ,सुबह ६ बजे के बाद, एक भी कमेन्ट न पाकर दिल कुछ हल्का हुआ ;-) आखिर हूँ तो ब्लागर ही
ReplyDelete( मेरे ब्लाग पर पिछले कई घंटे से आये सारे कमेन्ट गूगल खा गया ). एक शेर नज़र है
दिल खुश हुआ मस्जिद ए वीरान देख कर
मेरी तरह खुदा का भी खाना खराब है !
सलीक़ा ही नहीं शायद उसे महसूस करने का
ReplyDeleteजो कहता है ख़ुदा है तो नज़र आना ज़रूरी है
क्या बात है सहाब बहुत बढ़िया ये लाइन !
सर में सिर्फ ये लाइन ही पढ़ पाया और सब तो मुझे सिर्फ जीरो ही नज़र आ रहा है !
सतीश भाई , अब में क्या कहूँ ?
ReplyDeleteमेरे लिए तो इतना ही बहुत है,
आप जैसे दो चार मुहब्बत वाले आ जाएँ तो दिल खुश हो जाता है. बस आप अपना प्रेम बनाए रखें रही बात गूगल की ये तो फिर भी मशीन है यहाँ तो अच्छे भले आदमी का भी कभी मूड ख़राब हो जाता है.
साजिद भाई
ReplyDeleteये कलाम डा० वसीम बरेलवी का है अब उनके बारे में क्या कहूँ .वो उस्ताद शायर है.
शुक्रिया आप सभी का ..
सलीक़ा ही नहीं शायद उसे महसूस करने का
ReplyDeleteजो कहता है ख़ुदा है तो नज़र आना ज़रूरी है ।
क्या बात है, भाई सहसपुरिया जी मुझे तो लग रहा है कि इन सबको पढ़ने के लिये बार-बार आना पड़ेगा ।