आज मुनव्वर राना साहब के चन्द शे'र दुनिया की अज़ीम हस्ती माँ की शान में कहे गये पेश हैं.
मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आँसू
मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना
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हँसते हुए माँ बाप की गाली नहीं खाते
बच्चे हैं तो क्यों शौक़ से मिट्टी नहीं खाते
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हो चाहे जिस इलाक़े की ज़बाँ बच्चे समझते हैं
सगी है या कि सौतेली है माँ बच्चे समझते हैं
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हवा दुखों की जब आई कभी ख़िज़ाँ की तरह
मुझे छुपा लिया मिट्टी ने मेरी माँ की तरह
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सिसकियाँ उसकी न देखी गईं मुझसे ‘राना’
रो पड़ा मैं भी उसे पहली कमाई देते
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मुझे बस इस लिए अच्छी बहार लगती है
कि ये भी माँ की तरह ख़ुशगवार लगती है
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भेजे गए फ़रिश्ते हमारे बचाव को
जब हादसात माँ की दुआ से उलझ पड़े
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लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती
बस एक माँ है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती
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तार पर बैठी हुई चिड़ियों को सोता देख कर
फ़र्श पर सोता हुआ बेटा बहुत अच्छा लगा
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इस चेहरे में पोशीदा है इक क़ौम का चेहरा
चेहरे का उतर जाना मुनासिब नहीं होगा
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अब भी चलती है जब आँधी कभी ग़म की ‘राना’
माँ की ममता मुझे बाहों में छुपा लेती है
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मुसीबत के दिनों में हमेशा साथ रहती है
पयम्बर क्या परेशानी में उम्मत छोड़ सकता है
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जब तक रहा हूँ धूप में चादर बना रहा
मैं अपनी माँ का आखिरी ज़ेवर बना रहा
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देख ले ज़ालिम शिकारी ! माँ की ममता देख ले
देख ले चिड़िया तेरे दाने तलक तो आ गई
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मुझे भी उसकी जदाई सताती रहती है
उसे भी ख़्वाब में बेटा दिखाई देता है
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मुफ़लिसी घर में ठहरने नहीं देती उसको
और परदेस में बेटा नहीं रहने देता
*मुनव्वर राना
मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आँसू
ReplyDeleteमुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना ।
यूं तो मां पर लिखा गया हर शब्द बेहद कीमती होता है,
यहां तो हर कीमती शब्द से एक- एक पंक्ति लिखी गई है, बहुत ही सुन्दर दिल को छूने वाली प्रस्तुति के लिये बधाई ।
@ sada
ReplyDeleteSHUKRIYA
तार पर बैठी हुई चिड़ियों को सोता देख कर
ReplyDeleteफ़र्श पर सोता हुआ बेटा बहुत अच्छा लगा माँ का रुतवा तो बस ख़ुदा के बाद आया है बहुत बहुत बधाई
@ Sunil Kumar
ReplyDeleteशुक्रिया आपका.
शानदार
ReplyDeleteखूबसूरत शेर हैं सब ... मुनव्वर जी के क्या कहने ..
ReplyDeletegood selection.
ReplyDeleteसफ़ेद कपड़े पहनाकर यदि कुछ लोगों को कोयलों की कोठरी में से होकर गुज़ारने के बाद उनका अवलोकन करें तो हम देखेंगे कि किसी व्यक्ति के कपड़ों पर कम दाग़ होंगे, किसी के कपडों पर अधिक होंगे, कुछ के कपड़े ऐसे होंगे कि रंग का पता ही न चलेगा और उनमें जो उत्तम श्रेणी के लोग होंगे उनके कपड़ों पर कोई दाग़ न होगा और वही कामयाब कहलाने के हक़दार होंगे। इन्हीं सब बातों को ध्यान नें रखते हुए हमको अपने जीवन का मक़सद समझना चाहिए और कोशिश करनी चाहिए कि इस दुनिया से विदा होते समय हमारा दामन दाग़दार न हो।
http://haqnama.blogspot.com/2010/07/sharif-khan.html
मुनव्वर राना साहब का तो जवाब नहीं है ,और अगर विषय मां है तो वैसे भी हर चीज़, हर रिश्ते से ऊपर है ,
ReplyDeleteहवा दुखों की जब आई कभी ख़िज़ाँ की तरह
मुझे छुपा लिया मिट्टी ने मेरी माँ की तरह
वाह!क्या बात है!
धन्यवाद
@ दिगंबर नासवा, शरीफ ख़ान, इस्मत ज़ैदी
ReplyDeleteआप सभी का बहुत शुक्रिया...