डा० वसीम बरेलवी मेरे पसंदीदा शायर हैं , उनकी इक और ग़ज़ल पेशे ख़िदमत है.
अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपायें कैसे
तेरी मर्ज़ी के मुताबिक नज़र आयें कैसे
घर सजाने का तस्सवुर तो बहुत बाद का है
पहले ये तय हो कि इस घर को बचायें कैसे
क़हक़हा आँख का बरताव बदल देता है
हँसनेवाले तुझे आँसू नज़र आयें कैसे
कोई अपनी ही नज़र से तो हमें देखेगा
एक क़तरे को समुन्दर नज़र आयें कैसे
बहुत खूब
ReplyDeleteक़हक़हा आँख का बरताव बदल देता है
हँसनेवाले तुझे आँसू नज़र आयें कैसे
बहुत बढिया
ReplyDelete@आचार्य उदय, नीरज जाट जी
ReplyDeleteशुक्रिया आप दोनो का.
@ उमर कैरानवी साहब
ReplyDeleteक्या कहें हमारे तो भाग ही खुल गये...
शुक्रिया ज़ररा नवाज़ी के लिए.
भाई जान बहुत अच्छे, जवाब नही .
ReplyDeleteबड़ी खूबसूरत लगी बरेलवी साहब की यह ग़ज़ल
ReplyDelete@ SHADAB
ReplyDelete@ KK YADAVA
शुक्रिया
बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत ही शानदार.वसीम साहब की रचनाएं मैं पढ़ता हूं.
ReplyDeleteउनकी किताबें भी है मेरे पास.
@ SAJID
ReplyDelete@ RAJKUMAR SONI
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शुक्रिया ज़ररा नवाज़ी के लिए.
दिल को छू जाने वाली एक बेहद खूबसूरत ग़ज़ल! बहुत खूब!
ReplyDelete2000 करोड़ की संपत्ति की मालकिन, एक नव-यौवना को तलाश है मिस्टर राइट की!
ReplyDeleteक्या अब आपका नंबर है? ;-)
@ Shah Nawaz
ReplyDeleteभाई हम भी हैं लाइन में,
अभी जाते हैं टिकट बुक कराने...
अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपायें कैसे
ReplyDeleteतेरी मर्ज़ी के मुताबिक नज़र आयें कैसे