Wednesday, July 7, 2010

डा० वसीम बरेलवी मेरे पसंदीदा शायर

डा० वसीम बरेलवी मेरे पसंदीदा शायर हैं , उनकी इक और ग़ज़ल पेशे ख़िदमत है.

अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपायें कैसे
तेरी मर्ज़ी के मुताबिक नज़र आयें कैसे

घर सजाने का तस्सवुर तो बहुत बाद का है
पहले ये तय हो कि इस घर को बचायें कैसे

क़हक़हा आँख का बरताव बदल देता है
हँसनेवाले तुझे आँसू नज़र आयें कैसे

कोई अपनी ही नज़र से तो हमें देखेगा
एक क़तरे को समुन्दर नज़र आयें कैसे

14 comments:

  1. बहुत खूब
    क़हक़हा आँख का बरताव बदल देता है
    हँसनेवाले तुझे आँसू नज़र आयें कैसे

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  2. @आचार्य उदय, नीरज जाट जी
    शुक्रिया आप दोनो का.

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  3. @ उमर कैरानवी साहब
    क्या कहें हमारे तो भाग ही खुल गये...
    शुक्रिया ज़ररा नवाज़ी के लिए.

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  4. भाई जान बहुत अच्छे, जवाब नही .

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  5. बड़ी खूबसूरत लगी बरेलवी साहब की यह ग़ज़ल

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  6. @ SHADAB
    @ KK YADAVA
    शुक्रिया

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  7. बहुत ही शानदार.वसीम साहब की रचनाएं मैं पढ़ता हूं.
    उनकी किताबें भी है मेरे पास.

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  8. @ SAJID
    @ RAJKUMAR SONI
    *
    *
    शुक्रिया ज़ररा नवाज़ी के लिए.

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  9. दिल को छू जाने वाली एक बेहद खूबसूरत ग़ज़ल! बहुत खूब!

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  10. 2000 करोड़ की संपत्ति की मालकिन, एक नव-यौवना को तलाश है मिस्टर राइट की!

    क्या अब आपका नंबर है? ;-)

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  11. @ Shah Nawaz
    भाई हम भी हैं लाइन में,
    अभी जाते हैं टिकट बुक कराने...

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  12. अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपायें कैसे
    तेरी मर्ज़ी के मुताबिक नज़र आयें कैसे

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