Monday, June 28, 2010

शहरयार : इक अंदाज़

मशहूर शायर जनाब शहरयार साहब की ये ग़ज़ल मैं अपने दोस्त जनाब प्रदीप गुप्ता की नज़र करता हूँ. गुप्ता जी के बारे में इतना ही कहूँगा...
क़सम खुदा की मुहब्बत नही अक़ीदत है
दयारे दिल में बहुत एहतेराम है तेरा



अजीब सानेहा मुझ पर गुज़र गया यारो
मैं अपने साये से कल रात डर गया यारो

हर एक नक़्श तमन्ना का हो गया धुंधला
हर एक ज़ख़्म मेरे दिल का भर गया यारो

भटक रही थी जो कश्ती वो ग़र्क-ए-आब हुई
चढ़ा हुआ था जो दरिया उतर गया यारो

वो कौन था वो कहाँ का था क्या हुआ था उसे
सुना है आज कोई शख़्स मर गया यारो

7 comments:

  1. आभार शहरयार की इस गज़ल के लिए.

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  2. @ माधव, उड़न तश्तरी,Voice of People
    आप सभी का शुक्रिया,

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  3. कौशल्या आदि मां कैसे बनीं? दशरथ से? यज्ञ से? नहीं; दशरथ ने होता, अवयवु और युवध नामक तीन पुरोहितों से ''अपनी तीनों रानियों से सम्भोग करने की प्रार्थना की।'' पुरोहितों ने ''अपने अभिलषित समय तक उनके साथ यथेच्छ सम्भोग करके उन्हें राजा दशरथ को वापस कर दी।'' (पृ. 11) ऐसे वर्णन न तथ्यपूर्ण कहे जायेंगे, न अस्मितामूलक, बल्कि कुत्सापूर्ण कहे जाऐंगे। ब्राह्मणवादी मनुवादी व्यवस्था में दलितों के साथ स्त्रिायां भी उत्पीड़ित हुई हैं। कौशल्या आदि को उनका वृद्ध नपुंसक पति अगर पुरोहितों को समर्पित करता है और पुरोहित उन रानियों से यथेच्छ सम्भोग करते हैं तो इससे स्त्राी की परवशता ही साबित होती है। दलित स्त्राीवाद ने जिसे ढांचे का विकास किया है, वह पेरियार की इस दृष्टि से बहुत अलग है। पेरियार का नजरिया उनके उपशीर्षकों से भी समझ में आता है, ÷दशरथ का कमीनापन' (पृ. 33), ÷सीता की मूर्खता', (पृ. 35), ÷रावण की महानता' (पृ. 38), इत्यादि।

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  4. हर एक ग़ज़ल शहरयार की गज़ब है यारो
    और इस ग़ज़ल को पढ़ कर मैं सेहर गया यारो
    घन्यवाद !

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  5. शहरयार को पढवाने के लिए आपका शुक्रिया !

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