आप भी आइए, हम को भी बुलाते रहिए
दोस्ती ज़ुर्म नहीं, दोस्त बनाते रहिए।
ज़हर पी जाइए और बाँटिए अमृत सबको
ज़ख्म भी खाइए और गीत भी गाते रहिए।
वक्त ने लूट लीं लोगों की तमन्नाएँ भी,
ख्वाब जो देखिए औरों को दिखाते रहिए।
शक्ल तो आपके भी ज़हन में होगी कोई,
कभी बन जाएगी तसवीर, बनाते रहिए।
बहुत बढ़िया
ReplyDelete@ Dr Parveen
ReplyDeleteTHANKX
जावेद अख्तर को पढवाने के लिए शुक्रिया !
ReplyDeleteजावेद अख्तर को पढवाने के लिए शुक्रिया !
ReplyDeleteआभार जावेद साहब की बेहतरीन गज़ल पढ़वाने का.
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