Monday, June 14, 2010

सुदर्शन फाक़िर

उलफत का जब किसी ने लिया नाम रो प.ड़े
अपनी वफ़ा का सोच के अन्जाम रो प.ड़े

हर शाम ये सवाल मुहब्बत से क्या मिला
हर शाम ये जवाब के हर शाम रो प.ड़े

राह-ए-वफ़ा में हमको खुशी की तलाश थी
दो गाम ही चले थे के हर गाम रो प.ड़े

रोना नसीब में है तो औरो.न से क्या गिला
अपने ही सर लिया कोई इल्ज़ाम रो प.ड़े

4 comments:

  1. ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है

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  2. बहुत सुंदर !
    कविता को एक नए अंदाज़ में परिभाषित किया है आप ने !
    रूह की साझेदार तो वाकई कविता के अलावा और कोई बन ही नहीं सकता। अच्छा लिखा है आपने। आपको बधाई।

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