Friday, June 18, 2010

राहत इदौरी


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

अगर ख़िलाफ़ हैं होने दो जान थोड़ी है
ये सब धुआँ है कोई आसमान थोड़ी है

लगेगी आग तो आएँगे घर कई ज़द में
यहाँ पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है

मैं जानता हूँ के दुश्मन भी कम नहीं लेकिन
हमारी तरहा हथेली पे जान थोड़ी है

हमारे मुँह से जो निकले वही सदाक़त है
हमारे मुँह में तुम्हारी ज़ुबान थोड़ी है

जो आज साहिबे मसनद हैं कल नहीं होंगे
किराएदार हैं ज़ाती मकान थोड़ी है

सभी का ख़ून है शामिल यहाँ की मिट्टी में
किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है

5 comments:

  1. एक एक लाइन बार बार पढने का दिल करता है ! शुक्रिया !

    ReplyDelete
  2. राहत का सुनाने का अंदाज़ भी बढ़िया है, कहने का तो है ही.

    ReplyDelete
  3. Most welcome . आपका ब्लॉग देख कर बहुत अच्छा लगा . अल्लाह आपकी मदद करे , नेक राह चलाये .

    ReplyDelete
  4. साथियो, आभार !!
    आप अब लोक के स्वर हमज़बान[http://hamzabaan.feedcluster.com/] के /की सदस्य हो चुके/चुकी हैं.आप अपने ब्लॉग में इसका लिंक जोड़ कर सहयोग करें और ताज़े पोस्ट की झलक भी पायें.आप एम्बेड इन माय साईट आप्शन में जाकर ऐसा कर सकते/सकती हैं.हमें ख़ुशी होगी.

    स्नेहिल
    आपका
    शहरोज़

    ReplyDelete
  5. ooooffffffffffff


    kyaa likhaa hai ...!!!!!!!!!!

    ReplyDelete