मशहूर शायर जनाब शहरयार साहब की ये ग़ज़ल मैं अपने दोस्त जनाब प्रदीप गुप्ता की नज़र करता हूँ. गुप्ता जी के बारे में इतना ही कहूँगा...
क़सम खुदा की मुहब्बत नही अक़ीदत है
दयारे दिल में बहुत एहतेराम है तेरा
अजीब सानेहा मुझ पर गुज़र गया यारो
मैं अपने साये से कल रात डर गया यारो
हर एक नक़्श तमन्ना का हो गया धुंधला
हर एक ज़ख़्म मेरे दिल का भर गया यारो
भटक रही थी जो कश्ती वो ग़र्क-ए-आब हुई
चढ़ा हुआ था जो दरिया उतर गया यारो
वो कौन था वो कहाँ का था क्या हुआ था उसे
सुना है आज कोई शख़्स मर गया यारो
Monday, June 28, 2010
Friday, June 18, 2010
राहत इदौरी
अगर ख़िलाफ़ हैं होने दो जान थोड़ी है
ये सब धुआँ है कोई आसमान थोड़ी है
लगेगी आग तो आएँगे घर कई ज़द में
यहाँ पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है
मैं जानता हूँ के दुश्मन भी कम नहीं लेकिन
हमारी तरहा हथेली पे जान थोड़ी है
हमारे मुँह से जो निकले वही सदाक़त है
हमारे मुँह में तुम्हारी ज़ुबान थोड़ी है
जो आज साहिबे मसनद हैं कल नहीं होंगे
किराएदार हैं ज़ाती मकान थोड़ी है
सभी का ख़ून है शामिल यहाँ की मिट्टी में
किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है
Thursday, June 17, 2010
गोपालदास “नीरज” की ग़ज़ल
अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए।
जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाए।
जिसकी ख़ुशबू से महक जाय पड़ोसी का भी घर
फूल इस क़िस्म का हर सिम्त खिलाया जाए।
आग बहती है यहाँ गंगा में झेलम में भी
कोई बतलाए कहाँ जाके नहाया जाए।
प्यार का ख़ून हुआ क्यों ये समझने के लिए
हर अँधेरे को उजाले में बुलाया जाए।
मेरे दुख-दर्द का तुझ पर हो असर कुछ ऐसा
मैं रहूँ भूखा तो तुझसे भी न खाया जाए।
जिस्म दो होके भी दिल एक हों अपने ऐसे
मेरा आँसु तेरी पलकों से उठाया जाए।
गीत उन्मन है, ग़ज़ल चुप है, रूबाई है दुखी
ऐसे माहौल में ‘नीरज’ को बुलाया जाए।
गोपालदास “नीरज”
जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाए।
जिसकी ख़ुशबू से महक जाय पड़ोसी का भी घर
फूल इस क़िस्म का हर सिम्त खिलाया जाए।
आग बहती है यहाँ गंगा में झेलम में भी
कोई बतलाए कहाँ जाके नहाया जाए।
प्यार का ख़ून हुआ क्यों ये समझने के लिए
हर अँधेरे को उजाले में बुलाया जाए।
मेरे दुख-दर्द का तुझ पर हो असर कुछ ऐसा
मैं रहूँ भूखा तो तुझसे भी न खाया जाए।
जिस्म दो होके भी दिल एक हों अपने ऐसे
मेरा आँसु तेरी पलकों से उठाया जाए।
गीत उन्मन है, ग़ज़ल चुप है, रूबाई है दुखी
ऐसे माहौल में ‘नीरज’ को बुलाया जाए।
गोपालदास “नीरज”
Monday, June 14, 2010
सुदर्शन फाक़िर
उलफत का जब किसी ने लिया नाम रो प.ड़े
अपनी वफ़ा का सोच के अन्जाम रो प.ड़े
हर शाम ये सवाल मुहब्बत से क्या मिला
हर शाम ये जवाब के हर शाम रो प.ड़े
राह-ए-वफ़ा में हमको खुशी की तलाश थी
दो गाम ही चले थे के हर गाम रो प.ड़े
रोना नसीब में है तो औरो.न से क्या गिला
अपने ही सर लिया कोई इल्ज़ाम रो प.ड़े
अपनी वफ़ा का सोच के अन्जाम रो प.ड़े
हर शाम ये सवाल मुहब्बत से क्या मिला
हर शाम ये जवाब के हर शाम रो प.ड़े
राह-ए-वफ़ा में हमको खुशी की तलाश थी
दो गाम ही चले थे के हर गाम रो प.ड़े
रोना नसीब में है तो औरो.न से क्या गिला
अपने ही सर लिया कोई इल्ज़ाम रो प.ड़े
Wednesday, June 2, 2010
जावेद अख़्तर : सबकी पसंद
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